गुरुवार, 31 अगस्त 2023

कविता

 



वर्षा : नायिका रूपों  में 

मंजु महिमा

कितना साम्य है, हे वर्षा रानी!

साहित्य की नायिका से तुम्हारा!!

कभी तुम लाजवंती-सी

सतरंगी ओढ़नी ओढ़े

इतराने लगती हो तो कभी

सुनहरी गोटे लगी बादल की

ओढ़नी से ढँक लेती हो

लजा कर अपना मुखचंद्र।

सूरज के  संग खेल आँख मिचौली

बिखरा देती हो आसमान में सुनहरे रंग।

 

वर्षा! तुम एक मुग्धा नायिका-सी,

चली आती हो पायल छनकाती,

छन छन छन छन हमरे अँगना,

छेड़ देती हो तन मन के तारों को,

भूल जाते हम सारे दुख अपला।

 

हे! बरखा रानी कभी तुम

नृत्यांगना-सी करती नर्तन

बादल बन ड्रमर देते थाप,

पवन बाँसों की बाँसुरी बजा

निकालता है अद्भुत धुन ।

विद्युत प्रकाश भी छा जाता,

और  त्वरित गति से झरते स्वर

श्वेत तुम्हारी पायल से ,

धरती पर पुष्प सम बिछ जाते।

देख हम यह अलौकिक दृश्य

अपनी खिड़की की कोरों से,

सच नि:शब्द हो दंग रह जाते।

 

पर कभी कुपित नायिका-सी,

कोप धारिणी,

बन रणचंडी,

आतीं गरज़ बरस,

धवल दाँत दिखलाती।

उखाड़ पछाड़

कर तहस नहस

बन विकराल,

हम सबको दहला जाती।

 

कभी विरहिणी-सी बन

रात के अँधरे में चुपचाप

झिरमिर झिरमिर अश्रु बहाती।

 

कभी बन मानिनी नायिका-सी

रूठ जाती हो लाख मनाने पर भी

अपनी झलक नहीं दिखलाती।

भेज बादलों को दूत

स्वयं  बैठ वायु-विमान उड़ जाती।

ताकते रहते,  प्रतीक्षारत नयन,

हमको बूँद- बूँद तरसा जाती।

 मनाने का करते रहते प्रयास।

भेज बस इंदर राजा को पाती।

 

हे! वर्षा रानी, जैसी भी हो

हम धरतीवासी करते हैं

जी जान से प्यार तुमको,

गए  हैं हम जान कि हमारी ही

नादानी ने किया है क्षुब्ध तुमको।

क्षमप्रार्थी करबद्ध करते याचना

हो तुम प्राणाधार प्रेयसी सम

हर रूप तुम्हारा है स्वीकार्य हमें।

करती रहो अमृत वर्षा हम पे तुम,

करती रहो प्रेम-जल से सराबोर हमें।

सभी नायिकाओं के रूप समाए तुममें,

बन गई हो इस सृष्टि का आधार,

बीजारोपण करते हैं हम

पर कर सिंचन उनका,

देती हो तुम अपनी ममता का प्रमाण।

कितना साम्य है, हे वर्षा रानी!

साहित्य की नायिका से तुम्हारा!!

 


मंजु महिमा

अहमदाबाद (गुजरात)

 

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